यूनिवर्सिटी की आत्मा
एक समय की बात है, दिल्ली शहर में एक विश्वविद्यालय था जिसका नाम दिल्ली यूनिवर्सिटी था। यह विश्वविद्यालय बड़ी बड़ी इमारतों और हरियाली से घिरी आस-पास के क्षेत्र में स्थित था। इस विश्वविद्यालय की इमारतें रात को रौशनी से जगमगाने वाली थीं, लेकिन वहाँ कुछ अनजाने और डरावने घटनाओं का सामना करने वाले छात्रों की कहानी मशहूर थी।
एक रात, दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र विवेक अकेले ही अपने होस्टल में सो रहे थे। उन्होंने कुछ देर तक पढ़ाई की थी और अब वे थक चुके थे। जब उन्हें नींद आई, तो उन्होंने लाइट बंद कर दी और सोने की कोशिश की।
लेकिन कुछ ही समय बाद, विवेक को अजीब सी आवाज सुनाई दी। वह धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी और उसने लगातार गुनगुनाहट भी सुनी। विवेक बहुत डर गया और सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन वह आवाज बंद नहीं हो रही थी। धीरे-धीरे विवेक की थकान मिट गई और उसने आवाज का पीछा करने का निर्णय लिया।
विवेक बेडरूम से बाहर निकला और आवाज के स्रोत की ओर चला गया। वह उसे पुरानी पुस्तकालय की ओर जाने के लिए देख रहा था। पुस्तकालय एक भूतसंगीन स्थान था जहां छात्रों के दिल्ली यूनिवर्सिटी में होने वाली रहस्यमय घटनाओं की कहानियां सुनी जाती थीं।
जब विवेक वहां पहुंचा, तो वह देखा कि एक सुंदर लड़की उसे अपनी ओर आवश्यकता के संकेत कर रही है। वह बोली, "विवेक, मुझे बचाओ! मुझे इस पुस्तकालय में बंद कर दिया गया है और अब मेरी आत्मा इस दुनिया से आगे नहीं जा सकती।"
विवेक घबराया और उसने पूछा, "तुम कौन हो? क्या मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ?"
लड़की बोली, "मैं इस विश्वविद्यालय की एक पूर्व छात्री हूँ जिसका नाम प्रियंका था। मेरे साथ एक दिन एक दुष्ट आत्मा ने बड़ा अत्याचार किया और मुझे इस पुस्तकालय में बंद कर दिया। मेरी आत्मा तभी शांति पा सकेगी जब मेरी हत्या हो जाएविवेक डर से कांप उठा, लेकिन उसने ताकत जुटाई और पूछा, "प्रियंका, मुझे बताओ, मैं तुम्हें कैसे मदद कर सकता हूँ? क्या हम तुरंत तुम्हारी हत्या करके तुम्हारी आत्मा को शांति दे सकते हैं?"
प्रियंका ने उदासी से कहा, "नहीं, विवेक, मेरी हत्या करना तुम्हारे लिए सम्भव नहीं है। लेकिन तुम मेरे लिए उस दुष्ट आत्मा को ढूंढ़ कर मेरे विरुद्ध कार्यवाही कर सकते हो। उसे इस विश्वविद्यालय से बाहर निकालकर उसका अंत कर दो।"
विवेक ने संकेत में सहमति दी और प्रियंका के साथ वादियों की ओर चला गया। वे दोनों रात में विश्वविद्यालय के गहरे और भयंकर सिरे को तराशते हुए चल रहे थे। दूर-दूर से दुष्ट आत्मा की चीखें सुनाई देने लगीं, लेकिन विवेक और प्रियंका ने अपने दृढ़ संकल्प को बनाए रखा।
अंत में, वे दुष्ट आत्मा को एक पुरानी गड़बड़ी भरी किताब में पकड़ कर, उसे आग लगा दिया। विश्वविद्यालय की आग फैली और धुआंधार हो गया। वहां से निकलते समय, विवेक ने प्रियंका को देखा और उसने उसे धन्यवाद दिया।
प्रियंका हंसी में लिपटी बोली, "विवेक, अब मेरी आत्मा शांत हो जाएगी। धन्यवाद, तुमने मेरी मदद की। अब यह विश्वविद्यालय एक शानदार और अमनपूर्ण स्थान हो गया है।"
विवेक और प्रियंका की कहानी विश्वविद्यालय में फैल गई और इसके बाद से किसी ने उस पुरानी पुस्तकालय में डरावनी आवाजें नहीं सुनी। दिल्ली यूनिवर्सिटी का वह भूतसंगीन अध्याय अब सिर्फ एक कहानी के रूप में याद रह गया।
Train station atam
बस टर्मिनल से थोड़ी दूरी पर एक छोटा सा गांव था। वहां के लोग बस ट्रेन स्टेशन से घबराहट महसूस करते थे, क्योंकि उन्हें सुनसान रातों में अनजान आवाजों और दरावनी घटनाओं का सामना करना पड़ता था। लोगों के बीच यह बात प्रसिद्ध थी कि उनके गांव के ट्रेन स्टेशन पर एक भूत रहता है, जो रातों को जीवित हो जाता है।
एक रात, विनय नामक एक युवक ट्रेन स्टेशन पर अकेले रेल गाड़ी का इंतजार कर रहा था। उसकी त्राहिमाम बढ़ती जा रही थी, जबकि उसे इस भयंकर भूत की कहानी के बारे में अवगत था। लोग कहते थे कि भूत रात को ट्रेन स्टेशन पर घूमता है और दरावनी आवाजें करता है।
थोड़ी देर बाद, एक धुंधली सी रौशनी के बीच, विनय ने कुछ अनूठे आवाज़ सुनीं। उसे लगा कि वह भूत की आवाज हो सकती है। उसने अकेले में ट्रेन स्टेशन के अंदर आगे बढ़ाया और एक आवाज़ तक पहुंच गया। वहां पर उसने एक और लड़की को देखा, जो बहुत डर गई हुई थी।
विनय ने उससे पूछा, "तुम यहां क्या कर रही हो? तुम कौन हो?"
लड़की ने रोते हुए कहा, "मैं एक गांव की रहने वाली हूँ और मेरा नाम प्रिया है। मुझे ट्रेन स्टेशन पर आकर बड़ा बुरा सा अहसास हो रहा है, जैसे कि किसी भयानक आत्मा का हावभाव यहां पर महसूस हो रहा है।"
विनय बहुत डर गया, लेकिन उसने अपने आप को संभाला और पूछा, "तुम्हारे साथ क्या हुआ है? क्या मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ?"
प्रिया ने कहा, "हां, विनय, बस तुम मेरे साथ चलो। हम इस भयानक भूत को ढूंढ़ कर उसे शांत करेंगे।"
विनय और प्रिया ने बहुत हिम्मत जुटाई और उन्होंने रात की अंधकार में ट्रेन स्टेशन के कमरों में घुस गए। उन्होंने भयानक भूत के आवाजों का पीछा किया और उसे बाहर निकालने का निर्णय लिया।
अंत में, विनय और प्रिया ने ट्रेन स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म पर भूत को पकड़ लिया और उसे सामान्य इंसानों की तरह एक यात्री बना दियाउन्होंने भूत को उसकी गलती का अहसास कराया और उसे शांत करने के लिए आगे बढ़ाया। विनय और प्रिया ने साथ मिलकर एक पवित्र आरती पढ़ी और उसे शांति दी।
जैसे ही भूत को शांति मिली, रात की चुपचापी में सुकून चाहने वाली वाताएं चलने लगीं और ट्रेन स्टेशन की वातावरण में पुनः शांति घोल गई। विनय और प्रिया ने आपस में मुस्कान की और आपसी धन्यवाद दिया।
वह दिन से ट्रेन स्टेशन पर भूत की कहानी एक काल्पनिक घटना के रूप में याद रह गई और लोग फिर से बिना डर के रेल यात्रा का आनंद लेने लगे। विनय और प्रिया की कहानी उनके गांव में बहुत मशहूर हुई और उन्हें लोगों द्वारा सम्मानित किया गया।
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