भूतिया रात की सच्चाई
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यह कहानी एक छोटे से गाँव की है, जहाँ एक समय पर हर किसी की जिंदगी साधारण और शांतिपूर्ण थी। गाँव के पास ही एक घना जंगल था, जिसे लोग रात में जाने से कतराते थे।
गाँव में एक बूढ़ी औरत रहती थी, जिसका नाम कमला था। कमला के बारे में कहा जाता था कि वह जंगल में छिपे हुए रहस्यों को जानती है। गाँव वाले उससे डरते थे और उससे दूर रहते थे।
एक रात, गाँव के कुछ नौजवानों ने हिम्मत करके उस जंगल में जाने का फैसला किया। वे सभी मिलकर जंगल की ओर चल पड़े। जंगल में घुसते ही उन्हें एक अजीब-सी ठंडक महसूस होने लगी। रास्ता घना और धुंधला हो गया।
कुछ दूर चलने पर उन्हें एक पुराना और खंडहर-सा दिखने वाला मकान नजर आया। मकान के दरवाजे पर एक पुरानी लालटेन जल रही थी। उन्होंने हिम्मत करके दरवाजा खोला और अंदर चले गए। अंदर का दृश्य बहुत ही डरावना था। दीवारों पर खून के निशान थे और चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था।
अचानक, एक तेज चीख सुनाई दी और सबके रोंगटे खड़े हो गए। उनमें से एक नौजवान ने कहा, "हमें यहाँ से तुरंत निकल जाना चाहिए।" लेकिन जैसे ही वे बाहर जाने के लिए मुड़े, दरवाजा अपने आप बंद हो गया। कमरे में अंधेरा छा गया और ठंडी हवा चलने लगी।
कमरे के कोने से एक छाया उभरती दिखाई दी। वह छाया धीरे-धीरे उनके पास आ रही थी। नौजवानों ने देखा कि वह छाया कोई और नहीं बल्कि कमला थी। कमला की आँखें लाल हो रही थीं और वह कहने लगी, "तुमने मेरी शांति को भंग किया है, अब तुम इसकी सजा भुगतोगे।"
इतना कहते ही कमरे की दीवारें हिलने लगीं और नौजवानों के पैर जम गए। उन्होंने भागने की कोशिश की, लेकिन उनके शरीर मानो जड़ हो गए थे। कमला ने एक जोरदार ठहाका लगाया और चारों ओर अंधेरा छा गया।
सुबह गाँव के लोग जंगल के पास पहुँचे तो उन्होंने देखा कि वे नौजवान बेहोश पड़े थे। जब वे होश में आए, तो उन्होंने उस रात का पूरा वाकया बताया। उसके बाद से कोई भी गाँव वाला उस जंगल के पास नहीं गया। गाँव में आज भी लोग कहते हैं कि उस रात के बाद कमला का भूत अब भी जंगल में घूमता है और कोई भी उसे परेशान करने की हिम्मत नहीं करता।
गाँव के सबसे बुजुर्ग और ज्ञानी पंडित जी ने गाँववालों को समझाया कि इस समस्या का समाधान करने के लिए हमें कुछ विशेष पूजा और हवन करना होगा। उन्होंने सभी को भरोसा दिलाया कि अगर सही तरीके से अनुष्ठान किया जाए तो कमला की आत्मा को मुक्ति मिल सकती है।
अगली पूर्णिमा की रात को, पंडित जी ने पूरे गाँव को इकठ्ठा किया और हवन की तैयारियाँ शुरू कीं। गाँव के लोग, जिनके दिलों में डर और श्रद्धा दोनों ही थे, पंडित जी के निर्देशानुसार सभी कार्य कर रहे थे। पंडित जी ने विशेष मंत्रोच्चार और हवन सामग्री का उपयोग किया।
जैसे-जैसे अनुष्ठान आगे बढ़ा, जंगल के पास की हवाओं में एक अजीब-सी गूँज सुनाई देने लगी। पंडित जी ने गाँववालों को ध्यान लगाने और भक्ति से प्रार्थना करने को कहा। धीरे-धीरे वातावरण में परिवर्तन आने लगा, और ऐसा लगा जैसे कमला की आत्मा को इस प्रक्रिया से राहत मिल रही हो।
अंततः, हवन की अग्नि भड़क उठी और एक उज्जवल प्रकाश निकला। उसी क्षण, एक स्वर जंगल से आता सुनाई दिया। वह कमला की आवाज़ थी, जो अब नरम और शांत थी। उसने कहा, "आप सभी की प्रार्थना और प्रयासों ने मुझे मुक्ति दिलाई। अब मैं शांति में हूँ।"
उसके बाद, प्रकाश धीरे-धीरे मंद हुआ और जंगल में वापस अंधेरा छा गया। पंडित जी ने घोषणा की कि कमला की आत्मा को मुक्ति मिल चुकी है और अब गाँव वालों को डरने की जरूरत नहीं है।
गाँव वालों ने राहत की साँस ली और पंडित जी का आभार व्यक्त किया। गाँव में धीरे-धीरे फिर से शांति और सामान्य जीवन लौट आया। लेकिन उस रात की घटना ने सभी के दिलों में एक सीख छोड़ी कि आत्माओं को भी शांति और सम्मान चाहिए होता है।
गाँव वाले अब उस जंगल को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं और वहाँ जाने से पहले हमेशा प्रार्थना करते हैं। समय बीतता गया, लेकिन कमला की कहानी आज भी गाँव के बच्चों को सुनाई जाती है ताकि वे उस भूतिया रात की सच्चाई और पंडित जी के अद्भुत कार्य को याद रख सके
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